आंध्रा से कश्मीर तक – ईस्ट इंडिया कंपनी की वापसी

90 के दशक के उत्तरार्ध में लंदन में गुप्त बैठकें हुईं जहाँ भारत के एक पूरे राज्य के ‘विकास’ का खाका तैयार किया गया| इसे विजन 2020 कहा गया| यह योजना अमरीकी सेना से पैदा हुई एक कंसल्टेंसी फर्म मैकिन्से के दिमाग की उपज थी| इसे एक रोल मॉडल बनाया जाना था और भारत के दूसरे राज्यों में निर्यात किया जाना था और बाद में पूरे विकासशील देशों में| हालांकि आंध्र प्रदेश के लोगों द्वारा व्यापक विरोध ने इस ‘दुनिया के सबसे खतरनाक आर्थिक प्रयोग’ को नष्ट कर दिया| जिसे उस समय ईस्ट इंडिया कंपनी की वापसी के रूप में देखा गया था|

Read this report in English – From Andhra To Kashmir – Return Of East India Company

नीचे हम लेखक और राजनीतिक कार्यकर्ता जॉर्ज मोनिबोट द्वारा उनके 2004 के गार्डियन की रिपोर्ट में बताई गई ‘ईस्ट इंडिया कंपनि की वापसी’ की कहानी प्रकाशित कर रहे हैं| यह कहानी आज भी उतनी ही सच है बस कुछ नाम और पात्र बदल दिए गए हैं| कश्मीर विशिष्ट रिपोर्ट ग्रेटगैमइंडिया द्वारा अलग से प्रकाशित की जाएगी|

Return of East India Company
आंध्रा से कश्मीर तक – ईस्ट इंडिया कंपनी की वापसी

18 मई 2004
द गार्डियन
जॉर्ज मोनिबोट
यह वही है जिसके लिए हमने भुगतान किया है

आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू पश्चिम के सबसे लोकप्रिय भारतीय हैं| टोनी ब्लेयर और बिल क्लिंटन दोनों उन्हें राज्य की राजधानी हैदराबाद में मिलने आते| टाइम मैगजीन ने उन्हें वर्ष के दक्षिण एशियाई का खिताब दिया| इलिनॉय के गवर्नर ने उनके सम्मान में नायडू दे बनाया| और ब्रिटिश सरकार और वर्ल्ड बैंक ने उनके राज्य को पैसों से भर दिया| वे उससे प्यार करते थे क्योंकि उसने वही किया जो उसे बताया गया|

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नायडू ने यह बहुत पहले ही महसूस कर लिया था कि सत्ता में बने रहने के लिए उसे सत्ता का समर्पण करना होगा| वह जानता था कि जब तक वह वैश्विक शक्तियों को जो चाहिए देता रहेगा तब तक उसे पैसा और मान-सम्मान मिलता रहेगा| जो भारतीय राजनीति में बहुत महत्व रखता है| इसीलिए अपने राज्य के कार्यक्रम को स्वयं तैयार करने के बजाय उन्होंने एक अमरीकी कंसल्टेंसी मैकिन्से को यह काम दे दिया|

मैकिन्से की योजना, विज़न 2020, उन दस्तावेजों में से एक है जिसका सारांश एक बात कहता है और जिसकी सामग्री काफी दूसरी है। उदाहरण के तौर पर इसकी शुरुआत ऐसे होती है कि शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं सभी के लिए उपलब्ध कराई जानी चाहिए| केवल बाद में आपको पता चलता है कि राज्य के अस्पतालों और विश्वविद्यालयों को “उपयोगकर्ता शुल्क” द्वारा निजीकृत और वित्त पोषित किया जाना है| यह छोटे व्यवसायियों की प्रशंसा करता है| लेकिन जहां आम आदमी पढ़ कर थक जाए वहीं यह पता चलता है कि उनका असली इरादा उन कानूनों को खत्म करना है जो इन छोटे व्यवसायों की रक्षा करते हैं| और छोटे निवेशकों को जिनमें उत्साह की कमी है बड़े कॉरपोरेशंस के साथ प्रस्थापित करना| यह दावा करता है कि भारत में रोजगार पैदा करेगा| और आगे इस बात पर जोर देता है कि 2 करोड़ से अधिक लोगों को भूमि से हटा देना चाहिए|

इन सभी निजीकरण अभीनियमन और राज्य के सिकुड़ने के प्रस्ताव को साथ रखकर देखा जाए तो यह देखने को मिलता है कि मैकिन्से ने जाने-अनजाने में बड़े पैमाने पर भुखमरी का खाका तैयार किया है| जब आप 2 करोड़ किसानों की जमीन छीन ले जब राज्य अपने कर्मचारियों की संख्या कम कर रहा हो, और विदेशी निगम बाकी कार्यबल को “तर्कसंगत” कर रहे हो तब आप लाखों लोगों को काम या राज्य के समर्थन के बिना लाचार पाएंगे| राज्य के लोगों को मैकिन्से चेतावनी देते हैं कि परिवर्तन के लाभों के बारे में उन्हें प्रबुद्ध करने की आवश्यकता है|

मैकिन्से की दृष्टि नायडू की सरकार तक ही सीमित नहीं थी| जैसे ही वह इन नीतियों को लागू कर ले, आंध्र प्रदेश को इस तरह के सुधार में अन्य राज्यों का नेतृत्व करने के अवसरों को जब्त करना चाहिए और इसी प्रक्रिया में एक मॉडल राज्य बन जाए| विदेशी दाता प्रयोग के लिए भुगतान करेंगे, फिर नायडू के उदाहरण का पालन करने के लिए विकासशील दुनिया के अन्य हिस्सों को मनाने की कोशिश करेंगे| इन सब के बारे में कुछ तो परिचित है और मैकिन्से खुद हमारी यादें ताजा करता है|

विज़न 2020 में 1980 के दशक में चिली के प्रयोग के 11 चमकदार संदर्भ शामिल हैं| जब जनरल पिनोशे ने अपने देश के आर्थिक प्रबंधन को शिकागो बॉयज़ के रूप में जाने जाने वाले नवउदारवादी अर्थशास्त्रियों के एक समूह को सौंप दिया था| उन्होंने सामाजिक प्रावधान का निजीकरण किया| श्रमिकों और पर्यावरण की रक्षा करने वाले कानूनों को नष्ट किया| और अर्थव्यवस्था को बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हवाले कर दिया| परिणाम बड़े व्यवसाय के लिए एक बोनस था, और ऋण, बेरोजगारी, बेघर और कुपोषण में एक आश्चर्यजनक वृद्धि थी| इस योजना को अमेरिका द्वारा इस उम्मीद में वित्तपोषित किया गया था कि इसे दुनिया भर में लागू किया जा सके|

जनरल पिनोशे कि इस आर्थिक जादूगरी के पीछे लगा था ब्रिटेन का खूब सारा पैसा| जुलाई 2001 में अंतर्राष्ट्रीय विकास के लिए तत्कालीन सचिव क्लारे शॉर्ट ने अंततः संसद में स्वीकार किया कि कई आधिकारिक खंडन के बावजूद, ब्रिटेन विजन 2020 का वित्तपोषण कर रहा था| ब्लेयर की सरकार ने राज्य के आर्थिक सुधार कार्यक्रम, बिजली क्षेत्र के निजीकरण और उसके “भलाई के लिए केंद्र” को वित्तपोषित किया है| जिसका अर्थ है जितना संभव हो उतना कम शासन| हमारे कर इसके निजीकरण कार्यक्रम के लिए “कार्यान्वयन सचिवालय” को भी निधि देते हैं। ब्रिटेन के आग्रह पर इस सचिवालय को एडम स्मिथ इंस्टीट्यूट के द्वारा चलाया जाता है जो कि एक दक्षिणपंथी व्यापार लॉबी का समूह है| इस सब के लिए पैसा ब्रिटेन के विदेशी सहायता बजट से निकलता है|

यह देखना मुश्किल नहीं है कि ब्लेयर की सरकार ऐसा क्यों कर रही है| जैसा कि स्टीफन बायर्स, व्यापार और उद्योग के लिए राज्य के सचिव ने खुलासा किया, ब्रिटिश सरकार ने भारत को ब्रिटेन के 15 अभियान बाजारों में से एक के रूप में नामित किया है| यह अभियान ब्रिटिश अर्थव्यवस्था के अवसरों के विस्तार के लिए बनाया गया है| आंध्र प्रदेश के लोग जानते हैं कि इसका क्या मतलब है| वे इसे “ईस्ट इंडिया कंपनी की वापसी” कहते हैं|

यह आंध्र प्रदेश में दोहराए जा रहे ब्रिटिश इतिहास का एकमात्र पहलू नहीं है| इस बारे में कुछ तो आलौकिक है| जिस तरीके से ब्लेयर अपने दफ्तर के पहले कार्यालय में घोटालों से घिरे, आज वही घोटाले आंध्र प्रदेश में आवर्ती हो रहे हैं| बर्नी एक्लेस्टोन, फॉर्मूला वन के मालिक जिन्होंने लेबर को एक मिलियन पाउंड दिए और जिनके खेल को बाद में तंबाकू के विज्ञापन पर प्रतिबंध से छूट मिली वह अपने खेल को हैदराबाद लाने के लिए नायडू के साथ खरीद-फरोख्त करते पाए गए|

मुझे 10 जनवरी को राज्य मंत्रिमंडल की बैठक के लीक हुए मिनट दिखाए गए हैं| लीक हुए मिनटों से पता चलता है कि मैकिन्से ने कैबिनेट को निर्देश दिया कि हैदराबाद को “फॉर्मूला वन के साथ एक विश्वस्तरीय भविष्यवादी शहर” होना चाहिए| जिसकी महत्वपूर्ण आधारशिला के रूप में फॉर्मूला वन हो| हालांकि इसे व्यवहार्य बनाने के लिए राज्य से 400 से 600 करोड़ रुपए की सहायता की आवश्यकता होगी| इसका मतलब है फॉर्मूला वन के लिए राज्य से 50 मिलियन पाउंड की सब्सिडी वह भी हर साल| यह ध्यान देने योग्य है कि आंध्र प्रदेश में हजारों लोग अब कुपोषण से संबंधित बीमारियों से मर जाते हैं क्योंकि नायडू ने पहले ही खाद्य सब्सिडी में कटौती कर रखी थी|

इसके बाद तो मीटिंग के मिनट्स और भी दिलचस्प हो जाते हैं| एक्लस्टोन के फॉर्मूला वन को तंबाकू के विज्ञापन पर भारतीय प्रतिबंध से छूट मिलनी चाहिए| आगे यह नोट किया जाता है कि नायडू ने पहले ही “इस संबंध में पीएम के साथ-साथ स्वास्थ्य मंत्री को संबोधित किया था”, और यह उम्मीद कर रहे थे कि एक ऐसा कानून बनाया जाए जिससे इस प्रतिबंध से छूट मिल सके|

हिंदुजा बंधु, भारत में आपराधिक आरोपों का सामना कर रहे व्यापारी जिन्हें पीटर मैन्डेलसन द्वारा हस्तक्षेप किए जाने के बाद ब्रिटिश पासपोर्ट दिए गए थे वह भी विजन 2020 के आगे पीछे मंडरा रहे थे| लीक हुए मिनटों के एक और सेट से पता चलता है कि 1999 में उनके प्रतिनिधियों ने लंदन में भारतीय अटॉर्नी जनरल और ब्रिटिश एक्सपोर्ट क्रेडिट गारंटी विभाग के साथ एक गुप्त बैठक की| जिसका उद्देश्य था नायडू के निजीकरण कार्यक्रम के तहत पावर स्टेशन बनाने के लिए आवश्यक समर्थन प्राप्त करने में उनकी मदद करना| जब अटॉर्नी जनरल ने अपनी ओर से भारत सरकार की पैरवी करना शुरू किया तब एक और हिंदुजा घोटाला उबर कर बाहर आया|

हम जिस कार्यक्रम के लिए फंडिंग कर रहे हैं उसके परिणाम देखना बहुत आसान है| भुखमरी के मौसम में आंध्र प्रदेश के सैकड़ों लोगों को अपना गुजारा करने के लिए अब दान दक्षिणा के ऊपर निर्भर रहना पड़ता है| पिछले साल, राज्य में संचालित अस्पतालों की कमी के कारण एक इंसेफेलाइटिस के प्रकोप में सैकड़ों बच्चों की मौत हो गई| राज्य सरकार के अपने आंकड़े बताते हैं कि 77% आबादी गरीबी रेखा से नीचे आ गई है| माप मानदंड संगत नहीं हैं, लेकिन यह एक बड़े पैमाने पर वृद्धि प्रतीत होता है| 1993 में आंध्र प्रदेश के एक डिपो से प्रवासी कामगारों को मुंबई ले जाने वाली 1 बस थी| आज 34 हैं| अपनी ही जमीन से बेदखल किए गए लोगों को ब्लेयर के नए साम्राज्य में अब कुली बन कर गुजारा करना होगा|

सौभाग्य से भारत में लोकतंत्र आज भी जीवित है| 1999 में, नायडू की पार्टी ने 29 सीटें जीतीं, जिसमें कांग्रेस पाँच पर रही| पिछले हफ्ते वह परिणाम ठीक उलट गए| ब्रिटेन में हम ब्लेयर को अपने कार्यालय से बाहर तो नहीं भेज पाए| लेकिन आंध्र प्रदेश में हमारी तरफ से उन लोगों ने यह काम किया है|

लेख का अंत


यद्यपि, आंध्र प्रदेश के विभाजन ने इस योजना को फिर से जीवित करने का एक और अवसर प्रदान किया| उसी परियोजना को अब एक Big Four कंसल्टेंसी फर्म अर्नेस्ट एंड यंग के नेतृत्व में फिर से विजन 2029 के रूप में पुनर्जीवित किया गया| लेकिन नियति का लिखा कौन बदल सकता है| फिर से आंध्र प्रदेश के लोगों ने इस मास्टरप्लान का कड़ा प्रतिरोध किया और परिणाम के स्वरूप में सरकार को सत्ता से बाहर फेंक दिया| इसी के चलते विश्व बैंक को इस आशियाने के ताज के स्वरूप अमरावती कैपिटल सिटी प्रोजेक्ट से खदेड़ दिया गया| यह योजना जल्द ही पूरी तरह से समाप्त हो सकती है|

जैसा कि हमने पहले ही उल्लेख किया है इस महत्वपूर्ण कदम से वैश्विक शक्तियों के कई आयामों पर गंभीर प्रभाव पड़ा है| भारत और दुनिया भर में हर हाई-प्रोफाइल भ्रष्टाचार घोटाले में विवादित, हम एक और भारतीय राज्य में Big Four के फिर से उभरने का गवाह बन रहे हैं| आंध्र प्रदेश से लात मारकर बाहर निकाल दिए जाने के बाद अब कश्मीर उनका नया शिकारगाह है, या यदि आप पसंद करें – विशेष आर्थिक क्षेत्र (स्पेशल इकोनॉमिक जोन)|

Big Four कि कम से कम दो कंपनियों का इस बड़ी कश्मीर विकास योजना में शामिल होने की सूचना है – अर्नस्ट एंड यंग को ज्ञान साथी और प्राइसवाटरहाउसकूपर्स (PwC) को मीडिया प्रबंधन भागीदार के रूप में शामिल किया गया है| यद्यपि कश्मीर में उनकी भागीदारी की सटीक प्रकृति आम जनता के लिए प्रकट नहीं हुई है, लेकिन यह ज्ञात है कि लंदन, दुबई, अबू धाबी, सिंगापुर और मलेशिया के माध्यम से बड़ी मात्रा में धनराशि का प्रसारण किया जाना है – यह सभी जाने-माने कर मुक्त क्षेत्र है|

इस मोड़ पर Big Four का एक संक्षिप्त सारांश हमारे पाठकों को बताया जाना महत्वपूर्ण है – ग्रेटगैमइंडिया की बाद की रिपोर्टों में एक अधिक विस्तृत अध्ययन प्रकाशित किया जाएगा| Big Four में कंसल्टेंसी फर्मों केपीएमजी, अर्न्स्ट एंड यंग (EY), डेलोइट और प्राइसवाटरहाउसकूपर्स (PwC) शामिल हैं| साथ में वे FTSE 100 में 99% कंपनियों और FTSE 250 इंडेक्स में 96% कंपनियों का ऑडिट करते हैं| यह अग्रणी मिड-कैप लिस्टिंग कंपनियों का एक सूचकांक है| इसके कारण वे संपूर्ण ऑडिट बाजार पर हावी है| दूसरे शब्दों में बड़े पैमाने पर होने वाला कोई भी भ्रष्टाचार उनकी निगरानी में होता है|

ऑस्ट्रेलियाई कराधान विशेषज्ञ जॉर्ज रोज़वानी के अनुसार, Big Four “बहुराष्ट्रीय कर परिहार के मास्टरमाइंड और कर योजनाओं के आर्किटेक्ट हैं जिनके कारण सरकारों और करदाताओं को अनुमानित 1 ट्रिलियन डॉलर का घाटा प्रति वर्ष होता रहा है”| एक तरफ तो वे कर सुधारों पर सरकार को सलाह दे रहे हैं, तो दूसरी तरफ अपने बहुराष्ट्रीय ग्राहकों को करों से बचने के तरीके भी सुझा रहे हैं|

2012 में यह बताया गया कि दुनिया भर में कम से कम 21 ट्रिलियन डॉलर के अपने कुलीन ग्राहकों का पैसा Big Four ने टैक्स हैवेन में छिपा दिया था| इस महाठगी का भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव और इस पर भारतीय प्रतिक्रिया हमारे इस रिपोर्ट में पढ़ा जा सकता है – नकद पर वैश्विक युद्ध: लक्ष्य पर भारत| हम ग्रेटगेमइंडिया के उत्सुक पाठकों से आग्रह करेंगे कि वे भारत में भ्रष्टाचार के घोटालों में शामिल इन Big Four का अध्ययन करें और साथ ही साथ भारतीय अर्थव्यवस्था पर उनके संचयी प्रभाव का पता लगाएं|

संक्षेप में, Big Four अकाउंटिंग फर्म, पूर्व ब्रिटिश उपनिवेशों में टैक्स हेवन पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण के लिए जिम्मेदार हैं, जहां से दुनिया भर के भ्रष्टाचार से लूटे गए पैसों से इनर लंदन में वित्तपोषित किया जाता है – इस विस्तृत मायाजाल को Empire 2.0 के नाम से जाना जाता है|


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