हम भारतीय आज क्या और कहाँ हैं?

Read in English: What And Where Are We Indians Today?

नयी सहस्राब्दी के उषः काल में भारत अचम्भे और अनिर्णय के चौराहे पर अपने को खड़ा पाता है. यह एक दयनीय व ह्रदय विदारक स्थिति की ओर को इंगित करता है जबकि एक अरब से भी ज्यादा जनसँख्या वाला यह धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र अनेकानेक राजनैतिक, आध्यात्मिक व पन्थ विशेष के बौद्धिक सम्पदा सम्पन्न महानुभावों से अटा पड़ा है.

इस अचम्भे और अनिर्णय के चौराहे का प्रत्येक मार्ग विध्वंस की ओर ही पथ प्रशस्त करता दीखता है. भारतीय चित्त व मानस का मौलिक चिंतन, दर्शन, कला, नीति व अनीति का निर्णायक अधिष्ठान, अनादि काल से अनेकानेक वैश्विक योगदान और यहाँ तक की भारत की प्रचुर जनसम्पदा भी इस विध्वंस का ग्रास बनते हुए प्रतीत सी होती है.  

यह सत्य विषादजन्य प्रतिध्वनित अवश्य लगता है परंतु इस बात की नितांत संभावना है की संप्रभु भारतीय गणराज्य एक दुखद अंत की ओर द्रुत गति से अग्रेसित है. एक ऐसा अंत जिधर खंड खंड हुए भारतीय राज्य पश्चिम के अतिरेक से ग्रसित हो, अंध व कट्टरपंथी सांप्रदायिक विद्वेष से उत्पन्न आतंरिक कलह व युद्ध से पीड़ित जन व धन के अप्रतिम नाश के हेतु बन रहे हैं.

स्वतंत्रता प्राप्ति के ठीक बाद से ही नेतृत्व के नितांत अभाव, बौद्धिक अन्मयस्कता व आध्यात्मिक दीवालियापन ने इस वीभत्स स्थिति को प्रश्रय दिया है.   

उपरोक्त परिस्थितियों के सन्निधान में संस्कृति और सभ्यता के जनक भारत के विध्वंस को प्रभावी बनाने वाले निम्न ३ उत्प्रेरक तत्त्व स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होते हैं :

  1. सांस्कृतिक गौरव की एक उन्मत्त मदांधता व अविजेय होने का एक झूठा एहसास जोकि अनेकानेक राष्ट्रवादियों, सांस्कृतिक प्रचारकों और पुरातन पंथियों में विद्यमान है.
  2. भारतीय मानबिन्दुओं की निर्लज्ज, कपटपूर्ण व स्वनिषेधी भर्त्सना जोकि निकृष्ट घृणा की परिसीमा तक जा पहुंची है.
  3. भारतीयों के वो समूह जोकि उपरोक्त स्थितियों के अन्तर्निहित सन्दर्भों को आत्मसात करने व भारतीय मानबिन्दुओं के मूल्यवान सोपानों को संरक्षित करने को  कटिबद्ध हैं

भारतीय गणराज्य, उसके नागरिक व उसका नेतृत्व (राजनैतिक, सामजिक, आध्यात्मिक, साम्प्रदायिक) अपरिचयता और असंभवता के बीच असमंजस की स्थिति में हैं. अपरिचयता एक अज्ञानजन्य अवस्थिति है व सूचना स्रोतों के निरोध के चलते पूर्वाग्रहों की उत्पत्ति के कारण उत्पन्न होती है. इसका निर्मूलन सूचना के अबाध प्रवाह द्वारा किया जा सकता है. असंभवता एक ऐसी अवस्थिति है जोकि ढांचागत विश्लेषण के अभाव में प्रगट होती है. व्यावहारिक चिंतन व सृजनात्मक अपेक्षाओं के दारिद्र्य के चलते यह मूर्त रूप ले लेती है.   

उपरोक्त द्विविध आयामों की सिद्धि के बिना हमारा सहज स्वभाव निम्नगामी व्याख्या व असंगत विश्लेषण की दिशा को ही प्राप्त हो लेता है जोकि समूची भारतीय सभ्यता, राष्ट्र व देश को विध्वंस के कगार पर ले जाता है.

वास्तविक भारत क्या है?

भारत संतों, मनीषियों, योगियों, दार्शनिकों, शिक्षकों, वैज्ञानिकों और ज्ञान की विभिन्न शाखाओं में निष्णात पेशेवरों की भूमि है। उसकी अमर और शाश्वत संस्कृति इन सभी महान लोगों की थाती और विरासत है. विशेष रूप से हम भारतीय और सामान्य रूप से प्राच्यपूजी मानते हैं की हमारे पास समृद्ध परंपराएं, सुसंस्कृत रीति रिवाज और तर्कसंगत आदतें हैं. ज्यादातर भारतीयों का मानना है की हमारे पास एक अत्यंत समृद्धशाली सांस्कृतिक विरासत है. परंतु दुनिया के अन्य संभागों को यह भ्रान्ति है की हम अंधविश्वासी, कपटविहीन, साधनविहीन, परपीडक, ज्ञानविहीन बर्बर जाती हैं जिसे सभ्यता और संस्कृति के पाठ तीसरी सहस्राब्दी में पढ़ाने की आवशयकता है.

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भारतवर्ष सभ्यता का अधिष्ठान और समस्त धार्मिक सम्प्रदायों का मंदिर रहा है जिसमें धार्मिक सहिष्णुता अन्तर्निहित रही है. धर्मनिरपेक्षता का सन्दर्भ तो आततायी ब्रिटिश शासन के अंतकाल में  हमारे संविधान निर्माताओं द्वारा रोपित कर दिया गया.  

भारत न केवल हिन्दू, बौद्ध, सिख, जैन जैसी प्रमुख धार्मिक मान्यताओं का उद्भव व विकास स्थल रहा है बल्कि यहूदी, ईसाई, पारसी व इस्लाम की अन्यान्य शाखाओं जैसे अहमदिया, बहाई व आगाखानी के लाखों त्रसित अनुयायियों का एकमात्र संरक्षक रहा है. भारत ने न केवल उन्हें शरण प्रदान की वरन उन्हीं अपनी मान्यता के अनुरूप शान्ति व समरसता से जीने व पनपने का अवसर प्रदान किया.

आधुनिकता की आवशयकता और वैश्वीकरण की मजबूरी के चलते भारत की सहिष्णुता, परम्पराओं, मान्यताओं, मूल्यों और एक संप्रभु राष्ट्र के रूप में उसकी अखंडता पर ईस्ट इंडिया कंपनी की वंशज बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा प्रश्नचिन्ह लगाए जा रहे हैं. इन कंपनियों का एकमात्र उद्देश्य समूचे विश्व का आर्थिक प्रभुत्व प्राप्त करना है. इसके लिए उन्हें चाहे सभी नैतिक, सामाजिक, राजनैतिक मानबिन्दुओं को ध्वस्त करना पड़े या फिर हर प्रकार के सामजिक ढांचे को गिराना पड़े या फिर राष्ट्रीय सीमाओं का उल्लंघन करना पड़े. लोभ की पराकाष्ठा व व्यक्तिगत संपत्ति की दौड़ में ये कम्पनियाँ हर प्रकार का मूल्य चुकाने को तत्पर हैं.

क्या हम वास्तविकता में अंधविश्वासी हैं? क्या हमारी परंपराएं, आदतें, मान्यताएं बर्बरता पूर्ण अज्ञान से उपजी हैं? क्या हमारे आदर्श, मूल्य, विचार और कल्पनाएं प्रतिगामी हैं? क्या हमारे पूर्वजों की एक नैतिक संस्कृति में आस्था और विश्वास बेमानी है? क्या सभी महान मनीषियों और गुरुओं की शिक्षा धन के संग्रह की एक व्यक्तिगत व विकृत योजना मात्र  है? क्या सादा जीवन उच्च विचार का भाव आर्थिक विपन्नता का ही द्योतक है? क्या आत्मा व धर्म के स्वातंत्र्य के भाव अज्ञानजनित मात्र है?

विद्वानों, समाज शास्त्रियों, व्यावहारिक विज्ञानविदों और राष्ट्रवादियों द्वारा प्रदत्त ज्यादातर व्याख्यायों ने उत्तर की अपेक्षा प्रश्न अधिक खड़े किये हैं. गहन विचार की अपेक्षा हास्यास्पद व्याख्यायें जोकि तर्क व युक्ति से परे संदेह और कल्पना से अटी हुई प्रतीत होती हैं.

आज भारतीयों का एक बड़ा समूह जोकि भारतवर्ष के बाहर निवास कर रहा है और भारतीय सांस्कृतिक विरासत से अभिभूत है इस दिशा में गंभीर प्रयास कर रहा है. उपरोक्त सभी मुद्दों को एक संजीदगी व सृजनात्मक तरीके से संचालित कर रहा है. कई निवासी भारतीय विद्वान् भी इस दिशा में कार्यरत हैं.  हम भारतीयों की जानकारी से परे समूचे पाश्चात्य जगत में लगभग यही स्थिति व्याप्त है. दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण अमरीका के कई देश, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटैन, होन्ग कोंग, रूस, सर्बिआ और जापान इस दिशा में अग्रणी हैं.

बहुधा सन्दर्भों में या तो शोधकार्य सुनियोजित व संगठित रूप से नहीं किया जाता या फिर मध्य में ही प्रोत्साहन, दिशा निर्देशन, वित्तीय सहायता के अभाव में त्याग दिया जाता है. कई बार तो यह उदासीन व अन्मयस्क व्यक्तियों और व्यवस्थाओं के चलते खंडित हो जाता है. ज्यादातर शोधकर्ता लगभग एक ही विषय वस्तु या धारा का ही अभिगमन करते हैं या फिर जो किया जा चूका है उसकी पुनरावृत्ति करने में ही निरत रहते हैं. और तो और जब कभी कोई विशूद्ध व प्रभावपूर्ण शोध उद्भासित होता है तो वह भाषायी अवरोधों या अकादमिक पक्षपात के चलते प्रकाश में नहीं आ पाता.

ऐतिहासिक रूप से भारत और उसके संसाधनों – आर्थिक, मानवीय और सांस्कृतिक – की लूट का वर्णन पक्षपात के चलते किसी भी श्रेणी के इतिहासविद या अर्थशास्त्री द्वारा नहीं किया गया है. इन दोनों पक्षों से सत्य के निरूपण की अपेक्षा की जाती है परंतु न जाने किन कारणों से ये या तो मौन रहने को बाध्य हैं या फिर भारतीय इतिहास और संस्कृति के अनेकानेक पक्षों से अनभिज्ञ हैं.

हम कौन है?

हम वो लोग हैं जिन्होंने स्वतंत्र भारत के सामजिक अपकर्ष और नैतिक पतन को कर्क रोग की तरह फैलते देख कुछ कर गुजरने की ठानी है. हमने अपने देश को अपराधियों, गद्दारों और निम्नतम नैतिक मूल्यों से ओत प्रोत लोगों द्वारा त्रस्त होते हुए देखा है. हमें इस बात का विस्मय है की ऐसा सब क्यों हो रहा है और हम इन प्रश्नों के उत्तर देने को प्रयासरत हैं. इस दौरान हम इस बात से अचंभित हुए कि भारत के विषय में जो कुछ भी हमने पढ़ा वह ज्यादा से ज्यादा एक छद्म व झूठ की श्रेणी में ही वर्गीकृत किया जा सकता है.

हमें भारतीय समाज की कतिपय विसंगतियों को स्वीकार करने में किसी भी प्रकार का कोई क्षोभ नहीं है क्योंकि यह प्रत्येक समाज में किसी न किसी रूप में विद्यमान होती हैं जोकि सामाजिक ताने बाने के उद्भव की हजारों साल की प्रक्रिया में उत्पन्न हो जाती हैं. मूल प्रश्न यहाँ है की सभ्यता का प्रारम्भ कितने हज़ार वर्षा पूर्व हुआ था ? हमें बताया जाता है लगभग ३००० वर्ष. परंतु अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफ़ोर्निया बर्कले के भारत पृश्ठ पर यह लिखा गया है कि कम से कम ४०००० वर्षों से मानव जाति भारतीय उपमहाद्वीप में निवास कर रही है.

हमें इस तथ्य को स्वीकारने में भी कतिपय संकोच नहीं है कि भारत के गौरवशाली वैश्विक योगदानों ने पूर्व और पश्चिम के अनेकानेक विचारकों और चिंतकों का पथ प्रशस्त किया है. उनकी बहुविध अवधारणाओं को परिवर्तित व संवर्धित तक किया है. हमें व्यापक शोध के पश्चात इस बात की घोषणा करने में भी कोई भय नहीं है की पश्चिमी राष्ट्रों की अकूत संपत्ति व वैभव का मूल स्रोत आज से १५०० वर्ष पूर्व से अफ्रीका, अमेरिका और एशिया के देश – भारत व चीन समेत – रहे हैं जिन्हें बहुधा बलपूर्वक प्राप्त किया गया है.

इस प्रकार अपने भारतीयत्व का अन्वेषण करने की हमारी यह लंबी यात्रा का आरम्भ हुआ. अपने देश, अपनी संस्कृति, विरासत, परम्पराओं को एक तर्कसंगत अधिष्ठान के रूप में समझना और उसका  वर्त्तमान परिवेश में भी प्रासंगिक होना हमारी इस यात्रा का अभिन्न अंग रहा. वर्षों के हमारे इस गहन शोध को आप सभी से साझा करने का उपक्रम ही है ग्रेट गेम इंडिया.

हम एक पूर्ण रूपेण तार्किक विवेचना में विश्वास रखते हैं जोकि भारतीय समाज शास्त्र के सन्निधान में प्रायः एक विसंगति सी लगे. हम एक अवधारणा से प्रारम्भ कर, उसके आधार वाक्यों को निरूपित कर तथ्यों का संकलन करते हैं और एक पूर्ण तार्किक विवेचना का प्रयोग कर किन्ही निष्कर्षों को प्राप्त करते हैं. हमारी वस्तुनिष्ठता को किसी भी प्रकार के भावावेश, मिथक, अभिसंधि, प्रचलित मुहावरे, रूढ़ियाँ या फिर प्रजातीय विद्वेष की अभिव्यंजना प्रभावित नहीं कर पाए हैं बावजूद इसके की कई बार हमारे अन्वेषित सत्य ने स्थापित मानकों, ऐतिहासिक घटनाओं और प्रारूपों को ध्वस्त कर डाला है.  भारतीय परंपरा के नेति नेति -यह सही नहीं है यह सत्य नहीं है  – अधिष्ठान की अभिव्यंजना के अनुरूप हम हमारे सत्यान्वेषण के अभियोजन में निष्ठापूर्ण लगे हुए हैं और तब तक विश्राम को प्राप्त नहीं होंगे जब तक परिपूर्ण सत्य का अनुसन्धान न कर लें. हम सत्यमेव जयते की भावना को क्रिया में पदार्पित करने को कटिबद्ध हैं. हम हर प्रकार के सहयोग की वांछा करते हैं – नैतिक व आर्थिक – और प्रत्येक सहयोगी को नमन करते हैं.

इस अभियान से जुड़े हुए सभी सदस्य उच्च कोटि के पेशेवर हैं जिन्होंने अपने समृद्धशाली कैरियर का परित्याग केवल सत्य के अन्वेषण व संरक्षण हेतु कर दिया. हमारे साथी भौतिकविद, कंप्यूटर शास्त्री, प्रबंधकीय विशेषज्ञ और शोध की व्यवस्थागत प्रणाली में निष्णात हैं जोकि समयातीत ऐतिहासिक घटनाओं की वैज्ञानिक विवेचना कर समझाने में सिद्धहस्त हैं. यही विशिष्ट समझ एक दिन भारत की पुरातन पहचान जैसे ज्ञान का प्रकाशस्तंभ को पुनः प्राप्त करा देगी. इतना ही नहीं समूचे विश्व को युद्ध, दुर्भिक्ष व लोभ की विनाशकारी धारा से परे मानवीय विकास, प्रगति व क्रमागत उन्नति के सातत्य की और अभिमुख करा देगा.

आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतः – ऋग्वेद

‘हमारे पास महान विचार सभी दिशाओं से आएं’

सन्दर्भ  

यह अभिलेख ग्रेट गेम इंडिया के अंग्रेजी संस्करण का हिंदी रूपांतरण है. विषय वस्तु की गहनता के चलते भाषायी कलेवर थोड़ा क्लिष्ट अवश्य हो गया है परंतु अन्तर्निहित भाव का प्रागट्य भाषा की समृद्ध परिपाटी के प्रयोग से ही हो पाता है. “निज भाषा उन्नति है” के भाव से हमने वैश्विक परिदृश्य में भारत की वस्तुस्थिति को अभिव्यक्त करने हेतु इस माध्यम का पाथेय लिया. हिंदी के सुधिजन इस प्रारूप को आमंत्रित करेंगे ऐसी हमारी अभिलाषा है. अगर कहीं भाव का निष्पादन पूर्ण रूपेण दृष्टिगोचर नहीं हो पाता तो आप शब्दकोश.कॉम जैसे वेब संसाधनों की सहायता ले सकते हैं. रूपांतरण में त्रुटि अवश्यम्भावी है. यदि वह आपके संज्ञान में आए तो आप उसे हमारी संपादकीय टीम को सूचनार्थ अवश्य भेज दें. आपके सुझाव हमारा मार्गदर्शन करते रहेंगे.
greatgameindia-magazine-jul-sept-2016-issueInterested citizens, resource persons and organizations could get in contact with us for more details. Be a part of GreatGameIndia. Published in Jul – Sept 2015 Inaugural Issue of GreatGameIndia – India’s only quarterly magazine on Geopolitics & International Relations.

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1 COMMENT

  1. भाषा प्रयोग अतिकिलष्ट है| सर्व्ज्नसम्मत भाषा का प्रयोग अभीष्ट होगा|
    भाषा का प्रयोग काफी कठिन हो गया है आम बोलचाल की हिंदी प्रयोग करें|

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